Wednesday, June 25, 2025

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राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस पर मानसिक भलाई के लिए आयुर्वेद अभियान

महासमुंद। ‘हर दिन हर घर आयुर्वेद’
हम सब मिलकर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों
को अपने समाज में जागरूक करें। भारत सरकार आयुर्वेद के माध्यम से 10 अक्टूबर 2022 से 16 अक्टूबर 2022 तक मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुर्वेद के महत्व को प्राथमिकता देने के लिए राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 2022 के अंतर्गत एक अभियान चला रही है। जिसका की थीम है ‘Ayurveda for Mental Well-being’ । शासकीय आयुष पॉली क्लिनिक महासमुंद (छत्तीसगढ़) के प्रभारी डॉक्टर सर्वेश दूबे,एम. डी. आयुर्वेद (मानसिक रोग विशेषज्ञ) ने बताया कि
आयुर्वेद सैद्धान्तिक रूप से आयु की परिभाषा से लेकर स्वास्थ्य की परिभाषा तक क्रमशः मन और मानसिक स्वास्थ्य की बात करता है।
चिकित्सकीय दृष्टिकोण आयुर्वेद में मानसिक स्वास्थ्य एवं मानसिक रोगों को व्यापक स्थान दिया गया है।
चरक चिकित्सा स्थान में मेध्य रसायन का वर्णन यह दिखाता है कि हमारे महर्षियों ने मानसिक स्वास्थ्य को आज से हज़ारों वर्ष पूर्व भी अत्यंत महत्व दिया था।
आयुर्वेद की सत्वावजय चिकित्सा मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर आज भी है। आयुर्वेद का पंचकर्म मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अत्यंत ही लाभकारी है ।
शिरोधारा , शिरोवस्ति आदि चिकित्सा के द्वारा अनिद्रा आदि मनो विकारों में चमत्कारिक लाभ देखने को मिलता है।
डेली टेंशन हेडक आदि में शिरोधारा का बहुत महत्व है।

आयुर्वेद उस विचार धारा या सिद्धांत का समर्थन करता है कि एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ मन या स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर अभिव्यक्त करता है।
आयुर्वेद यह मानता है कि शारीरिक रोग मानसिक रोगों का और मानसिक रोग शारीररिक रोगों का अनुवर्तन करते हैं। यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो मन को स्वस्थ रखें । कई बार यह हमारे नियंत्रण में नहीं होता कि हम अपने मानसिक स्वास्थ्य को कैसे ठीक रखें ?
उसके कारण कुछ भी हो सकते हैं। हमारे समाज में मानसिक बीमारियों को मानने से इंकार करने की प्रवृत्ति एक बहुत बड़ी समस्या है। बुजुर्गों के प्रति यह समस्या अधिक गंभीर है कि कोई स्वीकार ही नहीं करना चाहता कि उनको मानसिक रोग है। मानसिक रोगों को आज भी एक सामाजिक कलंक के रूप में अधिक देखना , यह भी एक कारण है जो कि मानसिक रोगों की चिकित्सा में बाधक बन रहा है।
आनुवंशिक कारण भी मानसिक रोगों के लिए उत्तरदायी होते हैं। हमारी कार्यसंस्कृति भी एक कारण हो सकती है।
बहरहाल कारण जो भी हो यदि आप स्वयं को मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं रख पा रहे हैं तो किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ से मिलने में संकोच न करें।
आपका संकोच न करना आपके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर रखने में सहयोग करेगा।
हमारे देश में एक अनुमान के अनुसार आज लगभग 20 करोड़ से अधिक मानसिक रोगी हैं। कोरोनो के बाद इस संख्या में वृद्धि ही हुई होगी न कि कमी।
आंकड़े यह बताते हैं कि 4.5 करोड़ से अधिक मानसिक अवसाद और एंग्जाइटी के रोगी हैं हमारे देश में।
निःसंदेह यह चुनौती पूर्ण है । एन सी आर बी के 2021 के आंकड़ों को ध्यान दें तो लगभग 1.64 लाख लोगों ने आत्महत्या किया है देश में।
लगभग 50 लोग प्रति सप्ताह हमारे देश में आत्महत्या करते हैं।
सन 2000 से लेकर 2015 तक भारत में आत्महत्या दर लगभग 23 प्रतिशत बढ़ी है।
आत्महत्या के प्रमुख कारणों में से डिप्रेशन भी एक कारण है।
मानसिक स्वास्थ्य पर हम बात करना तो चाहते हैं लेकिन अभी भी समाज में मानसिक रोगियों के प्रति उतनी संवेदनशीलता नहीं है जितनी होनी चाहिए।
आज भी भूत बाधा आदि कुरीतियों का दुष्प्रभाव इतना है कि उचित चिकित्सा को भी समय से नहीं लेना चाहते लोग।
समस्याएं और तनाव जीवन का हिस्सा हैं लेकिन उनके साथ उचित सामायोजन और प्रबंधन अति आवश्यक है।
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है कि मन का निग्रह (Control & Coordination) कठिन कार्य है। मन को अभ्यास और वैराग्य से ही नियंत्रित किया जा सकता है। गीता 6/35
स्वयं को सकारात्मक गतिविधियों एवं अपने नियत कार्य में व्यस्त रखें।
समय समय पर पर्यटन भी आपको मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में सहायक होता है। यदि आपको किसी मनोरोग के लिए मेडिसिन दी जा रही हो तो उसे नियमित रूप से लें। समुचित निद्रा का सेवन करें।
आप अपने अंदर होने वाले परिवर्तनों को साझा करने से हिचकें न , हो सके तो किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ से भी चर्चा करने में संकोच न करें।
कुछ गंभीर मानसिक बीमारियों में व्यक्ति को समझ ही नहीं आता कि वह बीमार है , ऐसे रोगियों के लिए परिवार और समाज के लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सजगता हमें मानसिक रोगियों को एक अच्छा जीवन देने और एक स्वस्थ समाज के निर्माण में अत्यंत सहायक होगी।

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