योग प्रशिक्षण शिविर मे दीर्घशंख प्रक्षालन 9 दिसम्बर को
प्रभाव शारीरिक स्तर पर ही दिखाई देता है। परंतु यह क्रिया मन और प्राण पर गहरा प्रभाव डालती है। स्वामी शिवानंद सरस्वती योग भवन में पहुंचे शिवानंद कुटीर योगाश्रम डोंगरगढ़ के संचालक स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने उक्त बातें योग अभ्यास सत्र के दौरान कहीं उन्होंने कहा कि 10 दिवसीय योग शिविर में आसन प्राणायाम के अभ्यास के बाद अंत में शरीर दीर्घशंख प्रक्षालय की क्रिया के लिए तैयार किया जाता है, इस वर्ष भी 9 दिसम्बर 22 को कौंदकेरा के जंगल में योगाभ्यार्थियों को जलनेति, कुंजल एवं दीर्घ शंख प्रक्षालन क्रिया खाली पेट में करना होता है। पूर्ण क्रिया हेतु 16 गिलास कुनकुने जल की आवश्यकता होती है। स्वामी जी ने बताया कि शंख प्रक्षालन के बाद न केवल हल्कापन अनुभव किया जा सकता है, बल्कि चेतना में भी एक स्पष्ट परिवर्तन अनुभव किया जा सकता है। इसका अभ्यास अनेक व्याधियों अचेतन, मानसिक’ कब्ज एवं शारीरिक कब्ज को दूर करता है शरीर के शोधन के साथ मन का भी शोधन होता है सजगता की वृद्धि होती है। इस प्रकार इस क्रिया द्वारा चेतना के विकास को भी अनुभव कर सकते हैं स्वामी जी ने बताया कि शंख प्रक्षालन के 45 मिनट बाद मूंग दाल एवं चावल की खिचड़ी करीब 100 ग्राम घी मिलाकर खानी चाहिए। शंख प्रक्षालन के बाद एक सप्ताह तक आहार नियमों का पालन करना जरूरी है गौरतलब है कि नगर में विगत 31 वर्षों से 10 दिनी योग प्रशिक्षण के दौरान हठयोग की क्रियाएं कराई जाती है।