Friday, June 20, 2025

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महाराणा प्रताप में कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं की – गोस्वामी

खरोरा शाला में महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि मनाई गई

“मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप ने मुगल शासक अकबर की आधीनता कभी भी स्वीकार नहीं की। अकबर महाराणा प्रताप से इतना भयभीत था कि कभी भी उसने महाराणा प्रताप से सामने – सामने युद्ध नहीं किया। हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिए थे और मुगलों के पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। इस युद्ध मे महाराणा प्रताप बुरी तरह जख्मी हो गए थे। युद्ध के बाद महाराणा प्रताप कई दिनों तक जंगलों में रहे और कुछ समय बाद फिर से उन्होंने मेवाड़ पर शासन किया लेकिन उनके जीते जी कभी भी मुगल सेना मेवाड़ पर अधिकार नहीं कर पाई।” उक्त बातें पूर्व माध्यमिक शाला खरोरा में महाराणा प्रताप के पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में संस्था प्रमुख उमेश भारती गोस्वामी ने की। कार्यक्रम का प्रारंभ शाला नायिका पूजा परमार, सांस्कृतिक प्रभारी अंजलि जोशी व अश्वनी बंजारे द्वारा महाराणा प्रताप के छायाचित्र पर दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।

कु. डिंपल ने महाराणा प्रताप के अप्रतिम बल, अदम्य साहस व वीरता का वर्णन करते हुए कहा कि “महाराणा प्रताप के भाला, कवच, ढाल व तलवार का वजन 208 किलो था। उनके ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने तलवार के एक ही वार से बहलोल खान को बख्तर, घोड़े सहित दो टुकड़ों में काट दिया। शिक्षक डोमार राम साहू ने महाराणा प्रताप को भारत के धरोहर, वीर शिरोमणि, अत्यंत पराक्रमी और शेरदिल योद्धा बताया। उन्होंने कहा कि “वे अपने पास 2 तलवारे रखा करते थे, जब भी किसी युद्ध में जाते थे तो वहां यदि शत्रु के पास तलवार नही होती थी तो वह उसे अपनी एक तलवार दे देते थे एवं उससे युद्ध करते थे। क्योंकि प्रताप किसी भी निहत्थे सैनिक पर हमला नही करते थे।” इस अवसर पर दीक्षा, गौरव, जुगल किशोर गीत, कविता एवं भाषण प्रस्तुत किया। छात्र-छात्राओं द्वारा आकर्षक नृत्य भी प्रस्तुत किया गया।  कार्यक्रम का संचालन करते हुए दुबे कुमार पटेल ने कहा कि “महाराणा प्रताप का जन्म संघर्षों में हुआ, संघर्षों में पले बढ़े और जीवन भर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे।” कार्यक्रम को सफल बनाने में शिक्षिका रामेश्वरी ध्रुव मोना चंद्राकर व बाल पंचायत का सराहनीय योगदान रहा।

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