
ग्रीष्मकालीन फसल लगाने की जोरसोर से तैयारी शुरु
महासमुंद। आगामी ग्रीष्मकाल के लिए रसीले फल खरबूज-तरबूज, ककड़ी और साग-सब्जी के लिए महानदी पर खेती का कार्य शुरु हो गया है। किसानों ने खेती के लिए रेत पर क्यारियां तैयार कर ली है और बीज रोपण शुरु कर दिया है।
जानकारी के अनुसार यहां हर वर्ष करीब 10 एकड़ में तीन-चार गांव के किसान तरबूज-खरबूज के साथ साग-सब्जी की फसल लगाते हैं। किसान जोगी निषाद ने बताया कि खेती की तैयारी वे जनवरी माह से शुरु कर देते हैं। जिसके लिए यहां वे क्यारियां तैयार करते हैं और बीज रोपण करते हैं। रेत में नमी होने से उन्हें पानी की आवश्यकता कम पड़ती है। करीब एक माह के अंदर पौधे तैयार होते हैं और उनमें फल आना शुरु हो जाता है जिसकी बिक्री मार्च माह से शुरु हो जाती है। खेती को लेकर वे पिछले पखवाड़ेभर से यहां परिवार सहित जुटे हैं। बता दें कि महानदी में वर्षों से घोड़ारी, बरबसपुर, पारागांव सहित अन्य गांवों के करीब 40 किसान परिवार यहां खेती करते आ रहे हैं।
तरबूज-खरबूज के लिए प्रसिद्ध महानदी
महानदी पर होने वाली खेती प्रसिद्ध है। श्री निषाद ने बताया कि यहां सड़क मार्ग पुल के दोनों ओर सभी किसान मिलकर खेती करते हैं। सर्वाधिक रुप से महानदी में तरबूज-तरबूज खीरा-ककड़ी की खेती होती है। इसके साथ वे इसमें साग-सब्जी में टमाटर, करेला, भिंडी, धनिया पत्ती सहित अन्य सब्जियों की फसल लगाते हंै। फसलों को पुल किनारे पसरा लगाकर बेचने के साथ ही रायपुर में थोक व्यापारियों को बेचते हंै। श्री निषाद का कहना है कि महानदी पर खेती से उनकी चार माह आमदनी होती है।
विदेशों में जाती है यहां की फसल
यहां की खरबूज-तरबूज की मांग छग के अलावा महाराष्ट, दिल्ली के अलावा विदेशों तक है। रायपुर के बड़े व्यापारियों द्वारा थोक में फसल खरीदकर विदेशों में निर्यात किया जाता है। सर्वाधिक मांग तरबूज की रहती है। गर्मी में इस रसीले फल की सबसे अधिक मांग रहती है। महानदी के अलावा इसकी खेती बसना क्षेत्र से होकर गुजरी जोंक नदी पर भी होती है। ओडि़शा प्रांत में भी इसकी खेती वर्षों से हो रही है।