‘दो कदम प्रकृति की ओर’ समिति ने उठाया गौरैया को संरक्षित करने का बीड़ा
महासमुंद। कटते जंगल, उजड़ते वन और बढ़ती आबादी ने पक्षियों का आशियाना लगभग छीन सा लिया है। इनमें पक्षियों की कुछ ऐसी प्रजातियां हैं, जो विलुप्ति की कगार पर हैं। इन्ही पक्षियों में एक प्रजाति है, गौरैया। ये कभी हमारे घरों के आंगन में फुदकती और चहकती थी, लेकिन आज ये कम ही नजर आती हैं। इन्हें संरक्षित करने बीड़ा उठाया है ‘दो कदम प्रकृति की ओर’ समिति के युवाओं ने,वो भी किसी सरकारी मदद के बैगर। महासमुंद जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बागबाहरा ब्लॉक के आमाकोनी से संचालित इस समिति के युवाओं ने गौरैया को बचाने पिछले 7 सालों से मुहिम छेड़ रखी है।
पक्षियों के संरक्षण और उनके प्रति लगाव की बातें हम अक्सर सुनते और पढ़ते हैं, लेकिन हम खुद इस दिशा में क्या करते हैं ? लेकिन हमारे बीच ऐसे लोग भी मौजू्द हैं, जो इन पक्षियों को संरक्षित करने का काम खुद अपने बल पर कर रहे हैं। ‘दो कदम प्रकृति की ओर’ समिति के संचालक संजय साहू पेशे से फार्मासिस्ट हैं, इनका पक्षियों के प्रति लगाव देखते ही बनता है। अपने काम के साथ गौरैया के लिए बसेरा (घोसला) बनवाते हैं, और पक्षियों को संरक्षित करने का काम भी कर रहे हैं। यही नहीं, संजय बसेरा बना कर नि: शुल्क बांटते भी हैं। इनके बनाए घोसले में गौरैया आसानी से देखे जा सकते हैं। गौरेया के प्रति इनका प्रेम और उसके संरक्षण के लिए किया गया प्रयास इस गांव में साफ नजर आता है। गांव के हर घर में मिट्टी का बनाया गया बसेरा दिखाई देता है जिसमें गौरेया ने अपना घर बना लिया है। यही नहीं आस-पास के गांव में भी इसका असर दिखता है।
मानव और गौरैया के बीच बढ़ती दूरी को कम करना ही उद्देश्य
‘दो कदम प्रगति की ओर’ समिति में 25 सदस्यीय टीम मिलकर पिछले 7 सालों से बिलुप्त हो रहे गौरैया के संरक्षण का काम कर रही हैं। इसके पीछे की वजह है कि लोगों का रहन- सहन और बदलते परिवेश के कारण गौरैया मानव जीवन से दूर और विलुप्ति के कगार पर है। लोगों का जीवन स्तर में बदलाव और मिट्टी के घरों से दूरी और कांक्रीट के बने पक्के मकान बनने लगे हैं। इस समिति के युवाओं ने ना सिर्फ गौरैया बल्कि जंगली गौरैया, मैना, रोविन, सिल्वर बिल, मुनिया, बसंता जैसी पक्षियों का संरक्षण करने में जुटे हैं। इस समिति के युवाओं की सोच है कि मानव और गौरैया के बीच बढ़ती दूरी को कम करना है। साथ ही यह भी मानते हैं कि फसलों में कीटनाशक दवा का छिड़काव भी गौरैया की विलुप्ति का कारण बनता जा रहा हैं।
छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य प्रदेशों में जाता है बसेरा
गौरेया संरक्षण के लिए संजय साहू द्वारा बनाए गए बसेरा की खासियत यही है कि ये मिट्टी के होते हैं। जिसे गौरैया सहज ही अपने आशियाने के रूप में स्वीकार कर लेती है, और इसमें रहने लगती है। इनके द्वारा बनाया गया बसेरा छत्तीसगढ़ के अलावा केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, झारखंड, चंडीगढ़ जैसे राज्य के लोग बसेरा मंगवा रहे हैं। बता दें कि गौरैया एक संवेदनशील पक्षी है, अगर ‘दो कदम प्रगति की ओर’ समिति के इस प्रयास से हम थोड़ी भी सीख लें तो गौरेया एक बार फिर हम सबके आंगन में फुदकने और चहकने लगेगी।
वर्सन-
गौरेया पक्षी लगातार विलुप्त हो रही है। उसका हर घर बसेरा हो,उसका संरक्षण हो सके इसी उद्देश्य को लेकर समिति काम कर रही है, क्योंकि गौरेया को साथ लेकर चलने की हमारी परपंरा रही है और कहीं न कहीं गौरेया भी हमारे साथ रहना चाहती है। इसलिए पिछले सात वर्षों से गौरेया के संरक्षण को लेकर हम काम कर रहे हैं। अभी आमाकोनी और तमोरी में इसका सफलतम प्रयोग किया है। धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में काम किया जाएगा।
संजय साहू
संचालक, ‘दो कदम प्रगति की ओर’ समिति