
34 खंडपीठों का किया गया था गठन, 36 लाख से अधिक का अवार्ड पारित
जांजगीर-चांपा। जिला स्तर पर वर्ष की तृतीय नेशनल लोक अदालत का शुभारंभ जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुरेश कुमार सोनी, जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष नरेश शर्मा एवं अन्य न्यायाधीशों ने किया। लोक अदालत में 1589 मामलों का निराकरण किया गया और 3 करोड़ 36 लाख 15 हजार 181रूपए का अवार्ड पारित किया गया। सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण प्रियंका अग्रवाल ने बताया कि न्यायालयों में लंबित मामलों के अतिरिक्त राजस्व न्यायालयों में लंबित मामलों एवं प्री-लिटिगेशन मामलों के निराकरण के लिए जिले में कुल 34 खण्डपीठों का गठन किया गया था। हाईब्रिड माध्यम से आयोजित इस लोक अदालत में मामले पक्षकारों की प्रत्यक्ष उपस्थिति तथा आनलाईन उपस्थिति के माध्यम से निराकृत किए गए। आनलाईन माध्यम से खण्डपीठों के सुविधाजनक संचालन के लिए प्रत्येक खंडपीठ को ई-लिंक उपलब्ध कराया गया । जिससे जिटसी मीट एप ब्लू जिन या वीडियो कान्फ्रेसिंग के लिए किसी भी अन्य उपयुक्त माध्यम से पक्षकार अपने-अपने अधिवक्ताओं के साथ सुविधायुक्त स्थान से उनके ई-लिंक से संपर्क स्थापित कर न्यायालय में बैठे संबंधित खण्डपीठ के पीठासीन अधिकारी के समक्ष अपना पक्ष रख सकें। नेशनल लोक अदालत में भादवि की धारा 188 एवं आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 व अन्य सूक्ष्म मामलों के प्रकरणों के निराकरण के लिए उच्च न्यायालय द्वारा मजिस्ट्रेट न्यायालयों को अधिकृत किया गया था। जिसके परिप्रेक्ष्य में जिले के न्यायिक मजिस्ट्रेटों के लिए गठित खण्डपीठों के द्वारा विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की हैसियत से कार्य करते हुए प्रकरणों का निराकरण किया गया।
बच्ची को मिला माता-पिता दोनों का संरक्षण
एक दूसरे से अलग रह रहे दम्पत्तियों के दो मामलों में नेशनल लोक अदालत में कुटुम्ब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार वर्मा की समझाईश पर उभयपक्ष साथ-साथ रहने को तैयार हुए और न्यायालय से एक साथ अपने घर गए। प्राधिकरण की सचिव प्रियंका अग्रवाल ने बताया कि कुटुम्ब न्यायालय में लंबित प्रकरण लाखन विरूद्ध रोहिणी कश्यप में उभयपक्ष का कुटुम्ब न्यायालय जांजगीर में आयोजित नेशनल लोक अदालत में प्रकरण निराकृत हुआ। वर्ष 2003 में दोनों का विवाह हुआ था। विवाह के पश्चात स्वाती का जन्म हुआ। पति-पत्नी के मध्य लम्बे समय से विवाद होने के कारण पत्नी अपनी पुत्री के साथ मायके में निवास कर रही है। उसके पति ने अपनी पुत्री के संरक्षण के लिये यह मामला पेश किया था। प्रकरण का गुण-दोष पर निराकरण होता, तो अवयस्क स्वाती को उसके माता या पिता में से किसी एक का संरक्षण ही प्राप्त होता । नेशनल लोक अदालत में समझौता के बाद दोनों ने साथ-साथ रहना स्वीकार किया। इस तरह बच्ची को राजीनामा उपरांत उसके माता-पिता दोनो का संरक्षण प्राप्त हुआ । इन्हीं पक्षकारों के मध्य दो अन्य मामले भी इसी न्यायालय में लंबित थे, जिसका निराकरण भी राजीनामा के आधार पर हुआ।