

कोरबा 20 फरवरी। जनपद पंचायत कोरबा के नव निर्वाचित सदस्यों का भारतीय जनता पार्टी कार्यालय, कोरबा में भव्य स्वागत किया गया। इस अवसर पर पूर्व गृह मंत्री ननकी राम कंवर, प्रदेश मंत्री विकास रंजन महतो, भाजपा जिला अध्यक्ष मनोज शर्मा, पूर्व जिला अध्यक्ष राजेंद्र पांडे, संतोष देवांगन, टिकेश्वर राठिया, नरेंद्र देवांगन, सभी मंडल अध्यक्ष, महामंत्रीगण एवं वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित रहे।प्रथम चरण के चुनाव में जनपद पंचायत की पूर्व अध्यक्ष रेणुका राठिया को क्षेत्र क्रमांक 1 से लगभग 1078 वोट से जीत मिली। उनके सामने भाजपा की समर्थित प्रत्याशी निर्मला कंवर थीं। वहीं कांग्रेस के पूर्व रामपुर क्षेत्र के विधायक श्यामलाल कंवर की पत्नी भी मैदान में थीं। उनके अतिरिक्त और भी प्रत्याशी मैदान में थे जिन्होंने खूब मेहनत की लेकिन रेणुका सफल रही।कोरबा विकासखंड से ही क्षेत्र क्रमांक-2 में सावित्री अजय कंवर ने भी भाजपा से टिकट की मांग की थी लेकिन उन्हें बगावती तेवर दिखाकर मैदान में कूदना पड़ा। अच्छे जनाधार से उनकी जीत का रास्ता आसान हो गया। इस क्षेत्र में भी कई नामी-गिनामी चेहरों को हार का मुंह देखना पड़ा है। रामपुर विधानसभा क्षेत्र में जन समस्याओं के लिए लगातार संघर्ष करते आ रहे भाजपा के युवा नेता अजय कंवर के कामकाज का लाभ पत्नी को इस चुनाव में मिला। वहीं क्षेत्र क्रमांक-3 से भाजपा की ही बागी सुष्मिता ने जीत दर्ज कर प्रतिद्वंदियों को चारों खाने चित्त कर दिए।12 सदस्यीय जिला पंचायत कोरबा के लिए दूसरे और तीसरे चरण में 8 क्षेत्रों के सदस्यों का निर्वाचन बाकी है। कहा जा रहा है कि नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे और केंद्र व राज्य सरकार की हितग्राहीमूलक योजनाओं के अतिरिक्त विकास को लेकर किए जा रहे प्रयासों का असर सीधे तौर पर पंचायत चुनाव में पडना स्वाभाविक है। इससे भी अलग जिला पंचायत से संबंधित कामकाज के मामले में राज्य सरकार की भूमिका निर्णायक होती है।पिछले वर्षों में हुए चुनाव और चयन को लेकर कहा जा रहा है कि इस बार भी जिला पंचायत में भाजपा समर्थित अध्यक्ष वउपाध्यक्ष बनने तय हैं। खबर के अनुसार तीसरे चरण के नतीजे के साथ असली रणनीति पर काम हो सकता है। इसमें जीते हुए सदस्यों के लिए अच्छे प्लान और प्रवास प्रस्तावित किए जा सकते हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है, ऐसा जानकारों का कहना है। कहा जा रहा है कि अधिकांश क्षेत्रों में बड़े पदों पर निर्वाचन को लेकर सामान्य रूप से इसी पैटर्न पर काम किया जा रहा है। निर्वाचन के दौरान अलग-अलग कारण से कई कार्यकर्ता बगावती तेवर अपना लेते हैं लेकिन जनता के नजदीक होने से वे बड़े प्रत्याशियों पर भारी पड़ जाते हैं। अब इसे राजनीतिक दलों की मजबूरी कहें या आवश्यकता, बागी बताने के बावजूद ऐसे लोगों को बाद में अपने पक्ष में करना ही पड़ता है।